तू कहाँ: चंद मुक्तक
ये मुक्तक सर्वशक्तिमान शक्ति का पता बताने का एक प्रयास है. इन मुक्तकों का प्रयोजन कर्म कांडों से परे होकर आपसी सद्भाव के लिए प्रेरित करना है ताकि आपसी प्रेम वापस स्थापित हो सके. यह किसी भी पंथ, सम्प्रदाय, या धर्म के प्रति कोई द्वेष नहीं रखता.नहीं रहता वो मंदिर में नहीं मस्जिद में पाओगे.
जरूरी है नहीं मिल जाय गर तीरथ भी जाओगे.
उसे मतलब नहीं आजान या अरदास, कीर्तन से.
जहाँ पर भाई-चारा हो, वहाँ सब ईश पाओगे.||१||
मर गयी ढूंढती दुनिया मगर भगवान ना पाया.
किया जप तप नियम फिर भी किसी ने ईश ना पाया.
पीर औ फादरों के द्वार पे भटका मगर कह दूं .
जहाँ थी प्रेम की गंगा, वहीं अल्लाह को पाया.||२||
धरा दरवेश का हुलिया बना साधू औ सन्यासी
पहन के देख ली वल्कल रही पर आतमा प्यासी.
बना नागा मगर फिर भी जुड़ा ना शांति से नाता.
जो उतरा झूठ का चोगा, मिली खुशियाँ यहीं सारी.||३||
हविश जलने से बोलो क्या किसी को स्वर्ग मिलता है?
या बस सरिता नहाने से किसे अपवर्ग मिलता है?
अरे परलोक की चिंता बता करता है क्यूं प्यारे
जहाँ "तेरा-मेरा" ना हो, वहीं त्रैलोक मिलता है. ||४||
मिटाए द्वेष का मल जो वही तो धर्म अच्छा है.
कुटुम्बी हो सभी नर बस यही तो मर्म सच्चा है.
किसी को कष्ट देने से बड़ा है पाप ना कोई
दीन की हो अगर सेवा, तो समझो कर्म अच्छा है.||५||
नींद से जाग जा बन्दे कहीं ना देर हो जाए.
पकड़ ले अब सही रास्ता कहीं ना देर हो जाए.
ना जाने टूट जाये कब ये अपनी सांस की डोरी.
फ़टाफ़ट काम निबटा ले, कहीं ना देर हो जाए.||६||
राजेश कुमार "नचिकेता"
xcellent...!!!
ReplyDeleteमिटाए द्वेष का मल जो वही तो धर्म अच्छा है.
ReplyDeleteकुटुम्बी हो सभी नर बस यही तो मर्म सच्चा है.
किसी को कष्ट देने से बड़ा है पाप ना कोई
दीन की हो अगर सेवा, तो समझो कर्म अच्छा है.||५||
सभी मुक्तक अर्थपूर्ण लगे........ यह खास अच्छा लगा ....
बहुत बेहतरीन मुक्तक!! वाह!!
ReplyDeleteसुन्दर विचार, सुन्दर काव्य, धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत प्रेरणादायक रचना लिखी है,फिर क्या हो गया जो हमारी बात गलत समझे ,कृपया अप्नेप्रष्ण का उत्तर देख लें.
ReplyDelete@विजय साहब, प्रणाम. आप यहाँ तक आये उसके लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteयह बात तो है की सीता उतनी पूजित नहीं हुई जितने राम. लेकिन राम के चरित्र के बारे में कोई टिप्पणी न कर के उनके जीवन की ग्रह्य बाते अपने जीवन में उतारने की जरूरत है.
लोग जहां मनोरंजन करने वाले विदूषक की तरह वेश भूसा तो बना सकते हैं लेकिन राम कथा से कोई प्रेरणा नहें लेना चाहते. क्योकी कोई भी राम व् सीता जैसे त्याग के लिए बिलकुल तैयार नहीं है...आपकी व्याख्या सही है....
धीरे धीरे आपके लिखित सारे पोस्ट पढूंगा...जान के उत्साहित हूँ की आप ज्योतिषाचार्य हैं.
@आशुतोष, समीर जी, मोनिका जी, एवं अनुराग शर्मा जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद.
rajesh ji bahut sunder muktak hai.
ReplyDeleteaapki rachna padhkar bas itna hi kahati hun ki
jisko pujte hai pujne vale vo shivale aur hotehai....
आपने मुक्तकों के माध्यम से भगवान का सही पता दिया है. सभी मुक्तक सुन्दर.
ReplyDeleteनींद से जाग जा बन्दे कहीं ना देर हो जाए.
ReplyDeleteपकड़ ले अब सही रास्ता कहीं ना देर हो जाए.
ना जाने टूट जाये कब ये अपनी सांस की डोरी.
फ़टाफ़ट काम निबटा ले, कहीं ना देर हो जाए...
सभी मुक्तक सार्थक सन्देश दे रहे हैं ।
आभार।
.
बहुत ही बढ़िया मुक्तक लिखें हैं. इनकी अंतर्धारा में संतों का दर्शन बह रहा है. जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है.
ReplyDeleteगीत को कुरान से बू आती है, राम को रहीम से बू आती है,
ReplyDeleteअफ़सोस हम ऐसे समाज मे रहते हैं जहां इन्सान को इन्सान से बू आती है !
veri nice rajesh sir
ReplyDeletekis line ki tareef karoo aur kis par tippani karoo.....bada mushkil main daal diya aapne...
ReplyDeleteitna sundar kaise likh lete hai...
"khuda khud main khuda ko dhoondta hai tu kahan pyaare.....
jara kar band aankh apni yahan hai vo, yahan pyaare !!!"
are vah !
ye to achhi line ho gai....!!
thanx to inspire me...
जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना के लिए बधाई।
ReplyDelete@सुमन जी, सही कहा आपने.
ReplyDelete@कुंवर जी,
@दिव्या जी.
आप सभी के स्नेह और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.
@वन्दना जी, मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है की मेरी रचना चर्चा योग्य समझी गयी. आभारी हूँ और चर्चा में जरूर हिस्सा लूँगा.
ReplyDelete@भूषन जी, आप सब हा समर्थन और स्नेह मिलता है तो कुछ कोशिश कर पाटा हूँ. प्रणाम.
@जगदीश बाली साहब, मुझसे जुड़ने के लिए धन्यवाद. आपकी पंक्तियाँ अभी के समाज के लिए सही बैठ रही है...
@तुलसी, thanks
ReplyDelete@पूनम जी, आप सब का स्नेह और माँ भारती के आशीष से कुछ प्यायास करता हूँ. आप सब को पसंद आता है तो आभारी मानता हूँ खुद को.
@शरद जी, आपकी उदारता के लिए धन्यवाद. आपने समय निकाला. प्रणाम.
सुविचार ....अच्छे मुक्तक
ReplyDeleteअध्यात्म के चरमोत्कर्ष की स्थिति को जीवन में पदार्पित करने का सुंदर सन्देश
ReplyDeleteसुन्दर विचार, सुन्दर काव्य, धन्यवाद!
ReplyDeleteमिटाए दिल से द्वेष वही धर्म अच्छा ...
ReplyDeleteयदि शांति और प्रेम की स्थापना में विश्वास नहीं तो लाख धार्मिक आडम्बर कर ले , ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती !
सभी मुक्तक एक से बढ़कर एक !
सभी मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं।
ReplyDeleteहविश जलने से बोलो क्या किसी को स्वर्ग मिलता है?
या बस सरिता नहाने से किसे अपवर्ग मिलता है?
अरे परलोक की चिंता बता करता है क्यूं प्यारे
जहाँ "तेरा-मेरा" ना हो, वहीं त्रैलोक मिलता है. |
...लाज़वाब। बहुत बधाई।
It's awesome bhai. Gr8 .
ReplyDelete@संगीता जी,
ReplyDelete@गिरधारी जी,
@सत्यम जी,
@शिवा जी.
@गोपाल जी,
सब का धन्यवाद.
@वाणी जी,
ReplyDeleteयही सोच के मैंने भी लिखा...आडम्बर में फंस कर प्रभू से दूरी हो गयी है....
अच्छा लगा जान कर की कविता आप तक पंहुची...प्रणाम.
@ देवेन्द्र जी...धन्यवाद.
ati sunder abhivyakti ke liye bahut bahut bandhai.Aapka man nimal aur dwesh rahit prateet
ReplyDeleteho raha hai aapki is abhivyakti se.Aapka mere
blog 'Mansa vacha karmna' par swagat hai.
लगा कि वाकई आप धर्म सम्प्रदायों के होने के नुक्सान जानते हैं, चलिये कभी मिलिये यहां पर http://rajey.blogspot.com/
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना है जीतनी भी प्रशंसा की जाय कम है| आप ऐसे ही लिखते रहे इश्वर से यही प्रार्थना है ...
ReplyDeleteनींद से जगना होगा, देर नहीं होने देनी है।
ReplyDeleteराकेश जी, विवेक जी और praveen जी,
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद.
@ राजे साहब,
मैं धर्म में मानता हूँ. समस्या अनावश्यक आडम्बरों के कारण है.. और विशेषकर गलत प्रणाली के तहत कर्म काण्ड करने में. कर्म-काण्ड का महत्त्व होता होगा मैं नहीं जानता. या यूं कहें की समझ नहीं पता...
बेहतरीन रचना -बल्कि मोक्ष का द्वार दिखाती रचना !
ReplyDeleteराजेश जी .
ReplyDeleteआपने मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर अपने सुन्दर सार्थक विचारों का सहयोग प्रदान कर मेरा मनोबल बढ़ाया है.इस के लिए आपका आभारी हूँ.कृपया,समय समय पर आते रहिएगा. आपका
मार्गदर्शन मिलता रहेगा , ऐसी आपसे आशा रखता हूँ .
यह मुक्तक बड़ा ही प्रभावशाली है , मुझे इसका दूसरा छंद बहुत पसंद आया. बहुत अच्छा..
ReplyDeleteनींद से जाग जा बन्दे कहीं ना देर हो जाए.
ReplyDeleteपकड़ ले अब सही रास्ता कहीं ना देर हो जाए.
ना जाने टूट जाये कब ये अपनी सांस की डोरी.
फ़टाफ़ट काम निबटा ले, कहीं ना देर हो जाए.||६||
bahut badhiya .
जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना| धन्यवाद|
ReplyDelete@अरविन्द साहब,
ReplyDelete@राकेश जी,
@अमरनाथ जी,
@ज्योति जी,
@जोशी जी,
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद.
मिटाए द्वेष का मल जो वही तो धर्म अच्छा है.
ReplyDeleteकुटुम्बी हो सभी नर बस यही तो मर्म सच्चा है.
किसी को कष्ट देने से बड़ा है पाप ना कोई
दीन की हो अगर सेवा, तो समझो कर्म अच्छा है...
एक से बढ कर एक मुक्तक ....उम्दा रचना ...
आपका प्रयास शत-प्रतिशत सफल है .इससे बेहतर कुछ और संभवतः ...नहीं हो सकता .एक से बढ़कर एक सभी मुक्तक. लाज़वाब। बहुत बधाई।
ReplyDeleteइन पंक्तियों में जीवन की पूर्णता का सूत्र छिपा है।
ReplyDeleteनहीं रहता वो मंदिर में नहीं मस्जिद में पाओगे.
ReplyDeleteजरूरी है नहीं मिल जाय गर तीरथ भी जाओगे.
उसे मतलब नहीं आजान या अरदास, कीर्तन से.
जहाँ पर भाई-चारा हो, वहाँ सब ईश पाओगे. kya lines hain...really goood.
@क्षितिजा जी
ReplyDelete@अमृता जी,
@राधारमण साहब
@गोपाल जी,
आप सब का और अन्य सभी टिप्पणीकारों का बहुत बहुत धन्यवाद.
सही कहा है राजेश जी......जहाँ प्रेम है वहीं ईश्वर है..तभी तो प्रेम करने वालों को ईश्वर को ढूँढने की ज़रूरत नहीं पड़ती...
ReplyDelete