ये कुछ प्रश्न यू ही किसी के मन में उपजे हैं.
(अगले भाग में इन प्रश्नों के उत्तर मैथिली के मुख से ही मिलेंगे.)
मैथिली-१
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे
जानकी क्या दोष तेरा, जो विपिन जाना तुझे||
तृण बने जो तेरी सैय्या, फिर पलंग किस काम के
गर गुफा डेरा तुम्हारा, फिर भवन किस काम के
छोड़ छप्पन भोग-व्यंजन, कंद क्यों खाना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||१||
वाम-भागी राम की तू कुलवधू रघु-वंश की
धर्म-रत, पुत्री धरा की औ सुता मिथि-वंश की
तू है "आदि" फिर विशेषण कौन सा पाना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||२||
राम तो जाते हैं वन को, है हुकुम अवधेश की
"वन-गमन कर सुर-विजय हो" विनती है देवेश की.
उर्मिला-लछमन पृथक, फिर संग क्यों आना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||३||
तू भी जाने है! प्रजा का तुझपे होगा रोष भी
जांच मांगेगे तुझी से देंगे तुझको दोष भी
"बात ना मानी पिया की" देंगे ये ताना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||४||
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे
जानकी क्या दोष तेरा, जो विपिन जाना तुझे||
-- राजेश "नचिकेता"