Thursday, November 25, 2010

समय की गणना का दृष्टिकोण: समय और संख्या



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समय की गणना का दृष्टिकोण: समय और संख्या
बहुत दिनों से रामोदार (click here to know more about Raamodaar) की कोई खबर नहीं मिली और ना ही उसे देखा तो अचानक ध्यान हो आया की ना जाने कहाँ गायब हो गया. मुझे डर लगा की कहीं कोई अनिष्ट ना हो गया हो उसके साथ. असल बात ये है की मैं भी उसकी बातों का आदि हो गया हूँ. कभी कभी मैं ये सोचता हूँ की किसी भी परिस्थिति में उसके विचार अजीब होते हैं (जैसा की आप जानते हैं). इतनी बाल-सुलभ बातें बहुत कम सुनने में आती हैं सो मन हल्का करने के विचार से मैं उसके घर, धाँगड़-टोली की तरफ चला गया. मुझे उसके घर की ओर जाते हुए देखकर लोगो ने ऐसी प्रतिक्रिया दी जैसे मैं कोई इंसान नहीं बल्की किसी और ग्रह का प्राणी हूँ. खैर छोडिये ये सब. मेरी पहली दृष्टि जब उसपर पड़ी तो पाया की वो अपने गाय के बछड़े के बदन से जूएँ निकाल रहा था और साथ ही गाना गा रहा था...."कोएल बीनू बघिया...ना सोहे राजा (१)..... ". मुझे देखते ही प्रसन्नता और विष्मय से भरे चेहरे से मुझे पूछा...."अरे बाप रे....एतना दिन के बाद सूझे* आप. एक ठो बात कहते हैं आप तो पिछला कुछ दिन में मोटा गिये है हजूर."... इतना बोलते ही ठठाकर हँस पड़ा लेकिन अगले ही पल संभल कर बोला "लेकिन आप काहे ला इधर आये कोनो काम था त हमको बोला लेते नs".
मैंने उसे सहज होने को कहा और बात को बदलते हुए पूछा, "का भई अपना लेरुआ * (बछडा) से का बात कर रहे थे?"
"का जो बात करेंगे हजूर...हम तो इहे कह रहे थे की रे लेरुआ तू तो बीसे साल में अपना जिनगी पूरा लेता है..हम लोगन के तो ढेर जीना परता है..ओकरा में भी राम राम का नाम लेवे के टैम * नई मिलता है". इतना बोलते ही उसने सवाल दागा अपने रामोदार स्टाइल में....
"अच्छा हजूर एगो बात बताइये त कि जो हम जलमते * ही राम राम जपना चालू करें त कै बेर राम राम हो जाए पूरा जिनगी * भर में?"
विज्ञान से सम्बंधित रहने के करान शायद ही ऐसा कोई दिन होता होगा जब कोई छोटी या बड़ी गणना ना करता होऊ. लेकिन कभी ऐसी गणना नहीं की थी जैसी रामोदार ने कही. सोच ही रहा था की उत्तर देने की शुरुआत कैसे करू कि देखा रामोदार बड़े तेज़ी से अपने बछड़े के पीछे भगा. शायद रस्सी ढीली रह गयी थी और बछड़े ने अपने स्वातंत्र्य का पूरा लाभ उठाया और भाग खड़ा हुआ...दोनों की दौड़ देखता हुआ भी मैं उस गिनती के बारे में ही सोच रहा था. और जल्दी में गिनती कर डाली. निष्कर्ष कुछ रोमांचक और चिंतित करनेवाला था.
देखा जाये तो एक साल में कुल ३ करोड़, १५ लाख और छत्तीस हज़ार सेकंड होते हैं. सुविधा के लिए इसे ३ करोड़ मान लिया जाए. और अगर हम हर सेकंड ३ बार भी राम का नाम ले तो साल भर में ९ करोड़ और १०० साल में ९०० करोड़ बार बस. इस बात से ना जाने क्यों अपनी जिन्दगी बहुत छोटी लगने लगी थी. समय कि इतनी छोटी इकाई से भय सा होने लगा था. लगा कि ये महत्तम संख्या का दसवा हिस्सा भी हम इस्तेमाल नहीं करते. ज्यादातर समय तो लोग निंदा, झगडा और सोने में बिता देते हैं.
अचानक एक बात और कौंधी जो और भी झकझोरनेवाली थी.
एक नज़र डाले अगर 2G घोटाले में लिप्त रकम पर (१ लाख ७० हज़ार करोड़) तो पाते हैं कि अगर कोई हर सेकेण्ड १ रुपया कमाए तो इतनी रकम कमाने में उसे ६०,००० साल लगेंगे. या यू कहें कि ६०,००० साल में जितनी बार आप राम का नाम नहीं ले सकते उतनी रकम डकारते मिनट भी नहीं लगे इन लोगो को. आपको आसानी के लिए बता दूं कि हर सेकंड १ रुपया के हिसाब से ताउम्र ३ करोड़ रूपये बने अगर तो इसका मतलब है कि ३० साल की नौकरी में १ लाख रूपये प्रतिमाह जो कि महत्तम रकम हो सकती है एक इमानदार आम आदमी के लिए.
देश के कर आदमी की जेब से औसतन १७,००० रूपये लील गया यक प्रकरण. यह कितने ही घोटालों का महाघोटाला है.
और इसके बाद अंत क्या....."इस्तीफा". "पद का त्याग" करके "त्याग के पद" पे आसीन हो जाना कोई इनसे सीखे.
मैं अभी भी उसी संख्याओं के चक्कर में लगा था कि रामोदार ने आवाज़ लगाई "बोलिए न का हुआ..?" मगर मैं कुछ बोल नहीं पाया....एक बार फिर रामोदार ने कुछ सोचने को मजबूर किया था...

reference
१. शारदा सिन्हा द्वारा गाया हुआ एक भोजपुरी लोक-गीत.
*सूझे: दिखे हैं
टैम: टाइम
लेरुआ: गाय का बछडा.
जलमते: पैदा होते ही.
जिनगी: जिन्दगी.

राजेश कुमार "नचिकेता"

Thursday, November 18, 2010

श्रद्धांजली

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ये कविता उन वीरो कि इच्छा है जिन्होंने देश के लिए जान दी है और जो देश में सैनिको के साथ होने वाले व्यापार और राजनीति से व्यथित और सताए हुए हैं.
श्रद्धांजली


मातृ-अंक रख अपना मस्तक
जब अंतिम साँसें ली थी.
जनम सफल माना था सबने
जिसने भी जाने दी थी.
मरण सफल नहीं तब तक जब तक
इसका कोई अर्थ ना हो.
भान रहे ऐ देश-वासियों
मृत्यु हमारी व्यर्थ ना हो.|१|
नहीं डरते हम शत्रु-सैन्य से,
डर लगता है अपनों से.
लड़े काल से हम यथार्थ में
हार गए हैं सपनो से.
लगे न बोली लाश की देखो
ऐसा कोई अनर्थ ना हो
भान रहे ऐ देश-वासियों
मृत्यु हमारी व्यर्थ ना हो.||.
पदक नहीं देना और ना ही
पुष्प-गुच्छ करना अर्पण
भले ना करना मेरा श्राद्ध
या मत करना मेरा तर्पण
भटके चाहे मेरी आतमा,
भले प्राप्त मुझे स्वर्ग ना हो.
भान रहे ऐ देश-वासियों
मृत्यु हमारी व्यर्थ ना हो.||
दण्डित करो उस पापी को
जो वीरो का व्यापार करे
श्रद्धांजलि उन्नत होगी
गर राजनीति से रखो परे
पुनरजनम हो इसी भूमि पर,
नहीं ग़म गर अपवर्ग ना हो
भान रहे ऐ देश-वासियों
मृत्यु हमारी व्यर्थ ना हो.||.

राजेश कुमार "नचिकेता"

Sunday, November 14, 2010

जीवन की जय बोल


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अभी
के समय में आततायियो, हत्यारों और पापियों (आतंकवादियों) को पाप और हिंसा का मार्ग छोड़ कर प्रेम और धरम के मार्ग पर पेरेरित करने के लिए संबोधन.

जीवन की जय

धड़ मस्तक से नहीं पृथक कर, मृत्यु बांटने वाले
लहू को बहने दे नस में ही, गला काटने वाले
जीवन रक्षक प्राण-वायु में नहीं हलाहल घोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |१|

प्राण हेतु है कर्म भोग का, वध से मिलता क्या?
क्षत-विक्षत शव देख कलेजा नहीं पिघलता क्या?
करो चयन तुम मार्ग धरम का यही है अमृत बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |२|

कई शंख अणु, कोटि कोशिका और लक्ष्य कई ऊतक
कुछ सहस्त्र अंग, अस्थि सैकड़ों और बहुत से मूलक
संग भूत पंच मिला क्या जीवन गढ़ सकता है बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |३|

दुर्गम रचना, सुगम तोडना, सृजन कठिन, विध्वंस सरल है
शक्तिहीन तेरा शिकार पर याद रहे कि काल प्रबल है
कैसा हित तू साध रहा है प्राण छीन कर बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |४|

कितने सुन्दर सर, सरिता, पर्वत सागर और ये वन
थलचर वनचर के कलरव से घूंज रहा है उपवन
देख सृष्टि कि अनुपम रचना आँखों के पट खोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |५|

-नचिकेता
१४ नवम्बर २०१०