प्रस्तुत कविता, भारत के भाल पे आशंकित आक्रमण करने वालों के कारण पैदा हुए खतरे की ओर आम-जन का ध्यान आकर्षण के लिए है....
माँ का मुकुट
नीला अम्बर श्याम हुआ, अंधियारा छाया.
झेलम का जल निर्मल से है लाल हो गया.
माँ के मस्तक से बारूदी-धुंआ उठ रहा.
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा.||1||
माता के आँचल तक किसका हाथ बढ़ गया..
वधा गया दुस्साशन, रावण बलि चढ़ गया.
चीर हरण करने को ये फिर कौन उठ रहा.
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा. ||2||
लिए बन्ढूकें कौन घुसा सीमा के अन्दर
रौंदो उनको ऐसे जैसे उठे बवंडर.
शत्रु आया देखो हिमगिरी पुनः जल रहा
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा.||3||
कटा कलेजा विस्फोटों से, अस्थि पिघलती.
धमनी हुई विषाक्त, अंतरियाँ भी हैं जलती
पहले घायल हुआ ह्रदय अब स्वास घुट रहा
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा. ||4||
चंद भेड़िये घुस आये उत्पात मचाने.
ये उद्दंड कौन आ गए? हम भी जाने.
दूषित वातावरण हुआ सौहार्द्र मिट गया.
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा. ||5||
भारत की गरिमा को खंडित करने वालो.
अंतिम चेतावनी सुनो औ प्राण बचा लो.
आहूती प्राणों की देने राष्ट्र जुट रहा
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा. ||6||
राजेश कुमार "नचिकेता"
सन्देश देती हुई जोश भरती हुई रचना | अब प्रश्न है किन में जोश भरें ? चंद सैनिकों में या जो देश को लुट कर खा रहे है
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteसुंदर ओजपूर्ण रचना ...... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteखूर की गर्मी बढ़ाता आह्वान।
ReplyDeleteveer russ aur avhaan se bharpoor.. bohot khoob... jivatataa aur vidroh ki chingaari liye hue rachna...
ReplyDeleteकटा कलेजा विस्फोटों से, अस्थि पिघलती.
ReplyDeleteधमनी हुई विषाक्त, अंतरियाँ भी हैं जलती
पहले घायल हुआ ह्रदय अब स्वास घुट रहा
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा. ||4||
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति । इश्वर करे आपकी रचना जन-जन तक पहुंचे।
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सचेत करती प्रभावी रचना .
ReplyDeleteकाश हमारे द्वारा चुने हुए तथाकथित नेता ये समझ पाते !
adbhut.....
ReplyDeleteजोश भरती हुई प्रभावशाली अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteअपने देश के कुछ लोग भी इस कठघरे में आते हैं , बहुत ही अच्छा कृति है और एक प्रश्न भी.
ReplyDelete@सुनील जी, आपका यहाँ पधारने पर स्वागत..... और टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
ReplyDelete@शिवकुमार जी
@ मोनिका जी
@प्रवीण जी
बहुत बहुत धन्यवाद. .
@मलयज...बस लोगों के एकजुट करने का एक प्रयास.
जानकार अच्छा लगा की आप सब तक कविता पहुँची.
@ आदरणीय दिव्याजी, आपकी शुभकामनाओं के लिए आभार....
ReplyDelete@ निवेदिता जी, हम आप जैसे लोग कोशिश करेंगे तो शायद कुछ लोग जाग जाएँ....
@आशु thanks
@जोशी जी, धन्यवाद...
@अमरनाथ साहब...
ReplyDeleteबिलकुल सहमत हूँ आपसे....मुझे कभी कभी लगता है भारत को तथाकथित "अपने" लोगों ने जितनी क्षति पहुंचाई है वो आक्रान्ताओं द्वारा पहुंचाई क्षति से कहीं से भी कम नहीं है....
आज आवश्यकता है देश को ऐसे ही आह्वन की, जबकि माँ के मुकुट पर अपने ही धब्बा लगाने को तत्पर बैठे हैं!!
ReplyDeletebahut hi achhi kavita....
ReplyDeletedeshprem se otprot ojasvi kavita..
ReplyDeletehar pankti me aag hi aag hai..
ओज भरा उदबोधन ..आभार !
ReplyDelete@सलिल जी, क्या करें.....जगा के देखते हैं.....
ReplyDeleteआपका धन्यवाद.....आप लगातार प्रोत्साहन करते हैं....
@ श्याम,
@सुरेन्द्र जी
@अरविन्द जी,
सब का बहुत धन्यवाद...
बेहतरीन प्रभावशाली ओजपूर्ण अभिव्यक्ति.... धन्यवाद...
ReplyDeleteबहुत सुंदर और ओजपूर्ण रचना. आपकी शैली प्रभावित करती है. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही जोश भरती हुई सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
ओजपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसंदेशपरक ...सुन्दर ..बधाई
एक सार्थक एवं चिंतनपरक रचना, बधाई।
ReplyDelete---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
ओजपूर्ण बेहतरीन रचना। बधाई।
ReplyDeleteभारत की गरिमा को खंडित करने वालो.
ReplyDeleteअंतिम चेतावनी सुनो औ प्राण बचा लो.
आहूती प्राणों की देने राष्ट्र जुट रहा
उठो देश के वीरों माँ का मुकुट लुट रहा
राजेश जी बहुत सुंदर ओज पूर्ण रचना ! परन्तु देश के हुक्मरान बन बैठे इन भ्रष्ट नेताओ को कौन जगाये जो वोट बैंक के चक्कर में देश को बेचने पर तुले हुए है
deshbahkti ki bhavana ko jagati hui ek achchi kriti...Thanks
ReplyDelete@ कविता जी,
ReplyDelete@भूषन जी
@उपेन्द्र जे,
@अमृता जी,
@ रजनीश जी, आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद...
@ डॉ सिंह: आपका स्वागत है...
ReplyDelete@ अमरजीत जी: समझने वाले समझ जाएँ तो अच्छा.....नहीं तो समय तो सब को ठीक कर देगा...
@ गोपाल जी. धन्यवाद
सभी टिप्पणी कारों और पाठकों को वसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामना..
राजेश
bahut sunder..
ReplyDeleteहर पंक्ति में वीरभाव। लालकिले के कवि सम्मेलन में ही ऐसी कविताएं सुनने को मिलती हैं।
ReplyDelete@सुमन जी, धन्यवाद.
ReplyDelete@ राधारमण साहब, आपके शब्द सर आँखों पर...
प्रणाम