कर्म: कुछ मुक्तक
कभी हो मन अगर व्याकुल तो बस ये याद रखना तुम
कदम रुकने लगे या फिर लगे उत्साह होने गुम
हमसफ़र ना मिले तो ना सही तू रुक ना रस्ते में.
तुझे पाना हो गर मंजिल तो बस गतिशील रहना तुम |१|
अकेला आया था जग में, अकेला ही तू जाएगा
सुखों में साथ होंगे सब मगर दुःख में ना पायेगा
पड़ी विपदा अगर फिर भी न हो भगवान पर निर्भर.
तू लड़ ले स्वयं का रण खुद, नहीं अवतार आएगा. |२|
धरम है संग तेरे तो फिकर फिर तू क्यों करता है
मान ले बात कान्हा की, नहीं क्यों "कर्म" करता है.
सारथी ना हुआ कान्हा तो क्या? निर्भय रहो फिर भी
तुझमे वो शक्ति ऐसी है कि जिससे काल डरता है. |३|
अगर विश्वास मन में हो, गगन मुट्ठी में कर लेंगे
ठान ले हम अगर, पर्वत को भी चुटकी में भर लेंगे.
लिखेंगे काल के मस्तक पे हम कविता विजय-श्री के.
आये यम भी अगर एक बार को उससे भी लड़ लेंगे. |४|
शौर्य से जीतते हैं रण, यही अपनी कहानी है.
चीर दें सिन्धु का सीना, ये आदत भी पुरानी है।
करे किस्मत की क्या परवाह हम तो कर्म-योगी हैं.
जो बदले भाग्य का लेखा, वही असली जवानी है. |५|
"प्रेम की बात ही अच्छी" हमें सब लोग कहते हैं.
नहीं संग्राम हो कोई, अरे हम भी ये कहते हैं.
इससे क्या बात हो अच्छी अगर ना हो समर कोइ.
शान्ति के रास्ते हों बंद, तभी हम युद्ध करते हैं. |६|
-राजेश कुमार "नचिकेता"
कभी हो मन अगर व्याकुल तो बस ये याद रखना तुम
कदम रुकने लगे या फिर लगे उत्साह होने गुम
हमसफ़र ना मिले तो ना सही तू रुक ना रस्ते में.
तुझे पाना हो गर मंजिल तो बस गतिशील रहना तुम |१|
अकेला आया था जग में, अकेला ही तू जाएगा
सुखों में साथ होंगे सब मगर दुःख में ना पायेगा
पड़ी विपदा अगर फिर भी न हो भगवान पर निर्भर.
तू लड़ ले स्वयं का रण खुद, नहीं अवतार आएगा. |२|
धरम है संग तेरे तो फिकर फिर तू क्यों करता है
मान ले बात कान्हा की, नहीं क्यों "कर्म" करता है.
सारथी ना हुआ कान्हा तो क्या? निर्भय रहो फिर भी
तुझमे वो शक्ति ऐसी है कि जिससे काल डरता है. |३|
अगर विश्वास मन में हो, गगन मुट्ठी में कर लेंगे
ठान ले हम अगर, पर्वत को भी चुटकी में भर लेंगे.
लिखेंगे काल के मस्तक पे हम कविता विजय-श्री के.
आये यम भी अगर एक बार को उससे भी लड़ लेंगे. |४|
शौर्य से जीतते हैं रण, यही अपनी कहानी है.
चीर दें सिन्धु का सीना, ये आदत भी पुरानी है।
करे किस्मत की क्या परवाह हम तो कर्म-योगी हैं.
जो बदले भाग्य का लेखा, वही असली जवानी है. |५|
"प्रेम की बात ही अच्छी" हमें सब लोग कहते हैं.
नहीं संग्राम हो कोई, अरे हम भी ये कहते हैं.
इससे क्या बात हो अच्छी अगर ना हो समर कोइ.
शान्ति के रास्ते हों बंद, तभी हम युद्ध करते हैं. |६|
-राजेश कुमार "नचिकेता"
पहली बार आया आपके ब्लॉग पर... विज्ञान का रिसर्चर होकर इतना सुन्दर लिखते हैं... बधाई और शुभकामनाएं आपको..
ReplyDeleteaap ko dhero badhai is sundar rachna ke liye .umda .
ReplyDeleteराजेश जी! बड़े ओजस्वी मुक्तक हैं सब के सब.. एक आह्वान है सम्पूर्ण मानव जाति से!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर!! मन में जोश भर जाता है पढ़ते हुये!!
अगर विश्वास मन में हो, गगन मुट्ठी में कर लेंगे
ReplyDeleteठान ले हम अगर, पर्वत को भी चुटकी में भर लेंगे.
लिखेंगे काल के मस्तक पे हम कविता विजय-श्री के.
आये यम भी अगर एक बार को उससे भी लड़ लेंगे. |४|
सभी मुक्तक ओजपूर्ण.......
bahut sunder muktak bahut badiya.........
ReplyDeleteI really enjoyed reading the posts on your blog.
ReplyDeleteराजेश जी! बहुत सुंदर!! मन में जोश भर जाता है पढ़ते हुये!!
ReplyDeletebouth he aacha post kiya hai aapne ... read kar ke aacha lagaa
ReplyDeletePleace visit My Blog Dear Friends...
Lyrics Mantra
Music BOl
बड़ी तन्मयता के साथ आपको पढ़ा ...क्या कहूँ? ...हाँ! बहुत अच्छा लिखते हैं आप .. आपको बधाई .
ReplyDeleteसतीश जी, ज्योति जी, मोनिकाजी और सलिल साहब,
ReplyDeleteआप सब का उत्साह वर्धन और सराहना के लिए धन्यवाद....
स्नेह का भागी बनाने के लिए भी आभार..
आप सभी को गणतंत्र दिवस की अग्रिम बधाई....
@सुमन जी, आपकी सराहना अच्छी लगी....
ReplyDelete@ श्रीमान राजीव जी, स्नेह के लिए धन्यवाद..
@शिवा जी और मनप्रीत जी, आभार..और आगमन का शुक्रिया.
@अमृता जी, आपकी शाबासी और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...
आप सब स्नेह बनाए रखें....
आप सभी को गणतंत्र दिवस की अग्रिम बधाई....
आपके ब्लाग पर आ कर प्रसन्नता हुई। कई आलेखों का आस्वादन किया। आपके मुक्तक प्रेरणादायी हैं। भावपूर्ण लेखन के लिए बधाई।
ReplyDelete===============================
समझदारी
=====
उन्हें सोना समझते हैं, हमें कांसा समझते हैं।
कुछ अफसर आफिसों को एक ’जनवासा’ समझते हैं।।
उन्हें फ़रियाद निबलों की सुनाई ही नहीं पड़ती-
सबल के ‘शू‘ समझते, घूस की भाषा समझते हैं।।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
राजेश जी, कर्म को आपने अच्छे से परिभाषित किया है।
ReplyDeleteऔर हां, क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
"अकेला आया था जग में, अकेला ही तू जाएगा
ReplyDeleteसुखों में साथ होंगे सब मगर दुःख में ना पायेगा
पड़ी विपदा अगर फिर भी न हो भगवान पर निर्भर.
तू लड़ ले स्वयं का रण खुद, नहीं अवतार आएगा. "
राजेश जी..
किसी एक मुक्तक कि तारीफ करना बेइंसाफी होगी..!!!
आपकी सभी रचनाएं ओज और शौर्य से परिपूर्ण है..
कुछ सन्देश देती हुई सी......
बहुत ही सुंदर लिखते हैं आप !!
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद...!!
बहुत सुंदर, मन में जोश भर जाता है पढ़ते हुये|
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर मुक्तक . बहुत ही अच्छी सीख देते हुए ........ ........
ReplyDeleteबुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल
@लखनवी साहब, आप यहाँ आये बहुत अच्छा लगा. कुंवर जी, और दिव्या जी तो मार्गदर्शन करते ही हैं...अब आपका भी मार्गदर्शन मिलेगा तो मुझे लाभ होगा....
ReplyDeleteमुक्तक तो लाजवाब है.....
@पूनम जी,
@ पाटली जी,
@उपेन्द्र जी...
आप सब का प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद.....
आपका प्रवाह मनमोहक लगा, अज्ञेय की पंक्तियाँ बहुत सुहाती हैं मुझे।
ReplyDeleteमैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूँ।
कुछ ऐसा ही भाव समेटे आपकी कविता।
बहुत सुन्दर विचार !
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई !
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ....
ReplyDelete@ प्रवीण जी, अज्ञेय साहब की पंक्तियाँ याद दिलाने के लिए बहुत बह्गुत धन्यवाद. सच कहूं तो मैंने ये प्रेरणादायी पंक्तियाँ पहले नहीं पढी थीं. मेरे मुक्तल के बहाव आपको उसके समतुल्य लगे मेरे लिए ये बहुत बड़ा प्रोत्साहन है...बहुत ऊर्जा मिली.
ReplyDelete@ मीनाक्षी जी, बहुत बहुत धन्यवाद....
आपको भी गणतंत्र दिवस की बधाई...
@ चैतन्य जी, नन्हे से हैं आप....और मेरे ख्याल से आपका नाम "नचिकेता" होना चाहिए.... जो मैं बिना गुण हुए ही हथियाए बैठा हूँ....
ReplyDeleteयु तो बहुत ही अच्छा नाम है आपका. "चैतन्य", मगर आपको मैं आज से "नचिकेता" कहूं तो आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना....
आपके ब्लॉग की सबसे अच्छी बात ये लगी की "आप अपनी माता को तंग नहीं करते..."
इश्वर आपको चिरायु और यशश्वी बनाए....
शान्ति के रास्ते हों बंद, तभी हम युद्ध करते हैं. |
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा राजेश जी आपने -मेरा स्वर भी साथ है !
पहली बार आपको पढ़ा , बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर .....
ReplyDeleteसभी मुक्तक लाजवाब लगे .....
देखना है ये लौह-बेड़ियाँ कितनी पिघलती हैं ....
बहुत सुन्दर रचनाएँ..
ReplyDelete@ श्रीमान अरविन्द जी. बहुत धन्यवाद साथ देने के लियी.
ReplyDelete@मिथिलेश जी...आपका स्वागत...उम्मीद है स्नेह बना रहेगा.
@हीर जी...सब लोग साथ में प्रयास करते रहेंगे तो बेड़ियाँ पिघ्लेंगी ही भले ही वो वज्र की ही क्यों न बनी हों.
@कुंवर जी, हमेशा की तरह...उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद.
पहली बार आप्को पढ़ा । बहुत सधी और ओजपूर्ण भावनायें ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
सारे मुक्तक बेहतरीन हैं ... भाव और लए है शब्दों में जो अपने साथ बहा ले जाती है ... शुभकानाएं
ReplyDelete@निवेदिता जी, क्षितिज जी....सराहना और टिप्पणी के लिए धन्यवाद...
ReplyDelete@ क्षितिजा जी....हमसे जुड़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.....
ReplyDeleteमाफी चाहता हूँ...ऊपर आपका नाम गलत (क्षितिज) छाप गया...
बहुत खूब।
ReplyDelete.
ReplyDeleteजहाँ तक संभव हो युद्ध कों टालना चाहिए....
इसी विचार में मानवता बसती है। यही धर्म है।
बहुद ओजमयी , सुदर रचना के लिए बधाई।
.
अगर विश्वास मन में हो, गगन मुट्ठी में कर लेंगे
ReplyDeleteठान ले हम अगर, पर्वत को भी चुटकी में भर लेंगे.
जीवन को प्रेरणाओं और संवेदनाओं से भर देने वाले मुक्तक .....राजेश जी अनवरत लिखते रहें आप यही शुभकामना है
pahli baar aapko padha bahut accha laga aur bahut kuch seekhne ko mila aapse.
ReplyDeleteaaapki lekhan kala ko pranam hai
@देवेन्द्र पाण्डेय जी,
ReplyDelete@दिव्या जी,
@राम जी,
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद.
@अमन जी. आपका बहुत स्वागत....प्रेम बनायें रखें.
सारे टिप्पणीकारों के आभार...
ReplyDeleteअच्छा लगा की मेरी कविता और उसकी भावनाएं लोगों तक सशक्त रूप से पहुँची...
सुदर रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लिखते हैं आप !!
नचिकेता जी कर्मयोगी, प्रेमयोगी का सन्देश देते हुए aapne चीन और पाकिस्तान को भी धमका डाला है बहु अर्थी रचना
ReplyDelete@ संजय जी, बहुत बहुत धन्यवाद.....सीख रहा हूँ....
ReplyDelete@ गिरिधारी जी, "कर्म" करने के क्षेत्र में जो भी आ सकता है सब शामिल हैं इसमें....
टिप्पणी और बहुमूल्य समय के लिए धन्यवाद..