इन्द्रधनुष
जो सोए है उन्हें जगाते हैं हम अपने छंदों से. हम पिघलाते लौह-बेड़ियाँ कुछ स्याही की बूंदों से...
Friday, April 7, 2017
सरकार
Friday, June 6, 2014
ये चाँद
Friday, April 25, 2014
Tuesday, February 4, 2014
विडम्बना
Wednesday, January 1, 2014
नया साल
नया साल संग अपने एक उज्जवल दिनमान लाए
सुख शांति समृद्धि सम्पदा का नूतन पैगाम लाए
हो विस्मृत काली यादें सब दफ़न भूत में हो जाएँ
जीवन का पुरुसार्थ सिद्ध हो कुछ ऐसे आयाम लाए।
सभी को नए साल की बधाई और शुभकामना
-- नचिकेता
Thursday, April 12, 2012
मैथिली-१
Wednesday, September 7, 2011
रामोदार का गुरुत्वाकर्षण का नियम
सफलता से आदमी में अहंकार नहीं आना चाहिए नहीं तो वो अपने जमीन पे टिके रहने की शक्ति खो देता है और उड़ने लगता है. इस तरह की क्षद्म-ऊर्जा युक्त उडती हुई चीज का गिरना तय है और समझने वाली बात है कि ज्यादा ऊंचाई से गिरने का अघात भी ज्यादा होता है. वसे तो सभी को चाहिए कि वो खुद को अहंकार से बचाए रखे लेकिन सफल आदमी के लिए ये ज्यादा जरूरी हो जाता. सफल व्यक्ति अगर विनम्र ना हो तो उससे दूर रहने की सलाह दी गयी है. "दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्या अलंकृतोपिशं, मणिना भूषित सर्पः किमसौ ना भयंकरः" विनम्रता का आभाव किस हद तक घातक हो सकता है उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अवतारी पुरुष भी अविनाम्रता के दुष्परिणामों से नहीं बच पाए. ऐसा परशुराम अवतार की कथा में दृष्टिगोचर होता है. अपने क्रोध (या अविनाम्रता) के कारण भगवान परशुराम, जो कि स्वयं विष्णु के अवतार हैं, कभी भी जन-नायक नहीं हो पाए और यही परशुराम अवतार को रामावतार से भिन्न बनाता है. इसलिए सफल व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए.
इन सारी चर्चाओं से परे होकर अगर सोचें तो ध्यान एक नए नियम की तरफ जाता है और उसे मैंने नाम दिया है रामोदार का गुरुत्वाकर्षण नियम: "सफलता के कारण गुरुत्वाकर्षण बल में कमी आती है और आदमी उड़ने लगता है." इस नियम के जितनी ज्यादा अपवाद मिलें समाज के लिए उतना ही अच्छा.
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1 इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है. और ये कौन सा वैज्ञानिक है जिसे आश्चर्य होता है जब पेड़ से सेब नीचे गिरता है. आश्चर्य तो तब होना चाहिए जब वो गिरने के बाद ऊपर भाग जाय.
2 माने: मतलब
गुरत्ता: गुरुत्व
अही लेके: इसी कारण से
नै: नहीं
उरने: उड़
Sunday, August 14, 2011
आजादी और पंद्रह अगस्त
सपने में देखी मैंने
एक
चौंसठ साल की वृद्धा
रात के अंतिम पहर में
खड़ी थी दिल्ली शहर में
दूर से देखा तो कमर झुकी थी
ऐसा आभाष हुआ
पास गया तो थोड़ा
विरोधाभाष हुआ
चेहरे पर झुर्रियों की
झड़ी लगी थी
मगर गहनों से लदी पड़ी थी
मुझे देख कर सहम गयी
और रही मौन
मैंने पूछा कौन?
इत्ती रात को क्या कर रही हो?
इतने जेवर डालकर
अँधेरे में कहा जा रही हो?
उसने कहा
मैं अँधेरे और अकेलेपन की आदि हूँ
क्योकि
मैं "आजादी" हूँ
जिसे होना चाहिए
लोगो के मन में
पर मैं बंद हूँ
संसद भवन में
हर अमीर, आज अपने में मस्त है
मध्यवर्ग, मंहगाई से पस्त है
हर गरीब, व्यवस्था से त्रस्त है
मुझे आज जेवर मिले हैं
क्योकि
आज पंद्रह अगस्त है
मैं रोती हूँ आततायिओं की
कारगुजारी पर
मैं जाती हूँ अब
मिलूंगी छब्बीस जनवरी पर.
स्वप्न टूटा तो
मैं खुद से कई प्रश्न कर रहा था
और उधर लाल-किले पर
जश्न मनाने का "दस्तूर" चल रहा था
सब छुट्टी में मस्त हैं
क्योकि आज पंद्रह अगस्त है।
Tuesday, April 12, 2011
राम-जीवन:2
रानी उनकी तीन-तीन थीं मगर पुत्र ना एक| पाने को संतान थे उसने किये उपाय अनेक
जब अनुकूल समय आया तो राजा ने ये सोचा| करूं यज्ञ और पाऊँ सुत जो करे वंश को ऊंचा
पुत्र के खातिर यज्ञ किया और पाया ऐसा वर में| चार चार बेटे खेलेंगे राजा तेरे घर में
पूर्व जनम में राजा को था दिया हरि ने दान
तेरा सुत बनकर आऊँगा, कहलाऊँगा राम |दोo-८|
आये राम गर्भ में जबसे ऐसा हुआ प्रकाश| होगा अब कल्याण सभी का थी मन में ये आस
उस दिन अंतिम दिन था मेरे काले दुखी समय का| आनेवाले राम अवध में थे हरने दुःख सबका
चैत माह के शुक्ल पक्ष की नवीं तिथी की वेला| दिन के मध्य में आया वो जो था दुःख हरने वाला
धन्य गर्भ कौशल्या का और धन्य अवध की भूमि| स्वयं विष्णु ने आकर भर दी खाली गोदी सूनी
कहो भजूं मैं क्यों ना उनको जिनका ऐसा काम| छोटा बड़ा नहीं है कोई ऐसा कहते राम
ऐसी भाक्ती चाहता मैं नचिकेता दीन
राम मेरे पानी बने मैं बन जाऊं मीन |दो0-९|