Wednesday, September 7, 2011

रामोदार का गुरुत्वाकर्षण का नियम

आज बैठे बैठे कुछ याद आया और काफी प्रासंगिक भी लगा तो सोचा कि आप सब को बताऊँ. कुछ साल पहले मैं एक बच्चे को विज्ञान पढ़ाने में मदद कर रहा था और उसे मैंने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के सन्दर्भ में समझाते हुए कहा "जब वैज्ञानिक न्यूटन ने पेड़ से सेब को नीचे गिरते देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने गुरुत्वाकर्षण की खोज की." इतना कहते ही मेरे कानो में जो सुनाई दिया उसने मेरी तन्मयता को भंग कर दिया. किसी ने कहा "ईमे आस्चर्ज का कोन बात है जी. आ ई कोन बैगानिक है जिसको आस्चर्ज होता है जब गाछ से सेब निच्चे गिरता है. आस्चार्ज त तब न होना चाहिए जब ऊ गिरने के बाद उप्पर भाग जाय{1}" आपका अनुमान सही है अगर आप सोच रहे हैं कि ये वाक्य रामोदर के कंठ से निकले हैं. किताब ना पढ़ा जाय तो आदमी अपने अंतर्ज्ञान या यूं कहें कि सहज-ज्ञान के हिसाब से सोचता है और वही रामोदार ने किया भी. मैंने मुस्कुराते हुए रामोदार से कहा कि ऐसा होता है कि धरती सारी चीज़ों को गुरुत्व बल से अपनी ओर खींच के रखती है. अगर ऐसा ना हो तो चीज़े जमीन पे टिकी नहीं रह सकती. यूं तो मैंने अंतिम पंक्ति मैंने ऐसे ही समझाने के लिए कह दी थी लेकिन उसके उत्तर में जो रामोदार ने कहा उसे सुनकर आप भी स्तब्ध होकर सोच में पड़ जायेंगे जैसा कि मेरे साथ हुआ. उसने कहा "ओ!!!!!!! माने जब आदमी बडका अफसर बन जाता है चाहे बड़ा काबिल हो जाता है त उसका गुरत्ता बल कम हो जाता है अही लेके ऊ जो है जमीन पर नै टिकता है आ उरने लगता है{2}" पड़ गए ना सोच में. बात है ही सोचने वाली.

सफलता से आदमी में अहंकार नहीं आना चाहिए नहीं तो वो अपने जमीन पे टिके रहने की शक्ति खो देता है और उड़ने लगता है. इस तरह की क्षद्म-ऊर्जा युक्त उडती हुई चीज का गिरना तय है और समझने वाली बात है कि ज्यादा ऊंचाई से गिरने का अघात भी ज्यादा होता है. वसे तो सभी को चाहिए कि वो खुद को अहंकार से बचाए रखे लेकिन सफल आदमी के लिए ये ज्यादा जरूरी हो जाता. सफल व्यक्ति अगर विनम्र ना हो तो उससे दूर रहने की सलाह दी गयी है. "दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्या अलंकृतोपिशं, मणिना भूषित सर्पः किमसौ ना भयंकरः" विनम्रता का आभाव किस हद तक घातक हो सकता है उसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अवतारी पुरुष भी अविनाम्रता के दुष्परिणामों से नहीं बच पाए. ऐसा परशुराम अवतार की कथा में दृष्टिगोचर होता है. अपने क्रोध (या अविनाम्रता) के कारण भगवान परशुराम, जो कि स्वयं विष्णु के अवतार हैं, कभी भी जन-नायक नहीं हो पाए और यही परशुराम अवतार को रामावतार से भिन्न बनाता है. इसलिए सफल व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए.

इन सारी चर्चाओं से परे होकर अगर सोचें तो ध्यान एक नए नियम की तरफ जाता है और उसे मैंने नाम दिया है रामोदार का गुरुत्वाकर्षण नियम: "सफलता के कारण गुरुत्वाकर्षण बल में कमी आती है और आदमी उड़ने लगता है." इस नियम के जितनी ज्यादा अपवाद मिलें समाज के लिए उतना ही अच्छा.

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1 इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है. और ये कौन सा वैज्ञानिक है जिसे आश्चर्य होता है जब पेड़ से सेब नीचे गिरता है. आश्चर्य तो तब होना चाहिए जब वो गिरने के बाद ऊपर भाग जाय.
2 माने: मतलब
गुरत्ता: गुरुत्व
अही लेके: इसी कारण से
नै: नहीं
उरने: उड़

8 comments:

  1. दिनों बाद रामोदार की खबर मिली.
    बहुत अच्छा लेख है: रामोदार का गुरुत्वाकर्षण का नियम,
    सच ही तो है कि जब आदमी के पास सफलता आती है तो वो उड़ने लगता है और पैर ज़मीन पर नहीं टिकते.

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  2. रामोदर के नियमों में शोध की आवश्यकता है, आने वाली पीढ़ियों में पूजा जायेगा रामोदर।

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  3. सफलता से आदमी में अहंकार नहीं आना चाहिए नहीं तो वो अपने जमीन पे टिके रहने की शक्ति खो देता है .

    चिंतन योग्य ...लेकिन आदमी कहाँ कर पाता है यह सब उसे तो बस अपनी सफलता और सोहरत से ही प्यार होता है ......रामोदार का सिद्धांत विश्लेषण योग्य है ....आपका आभार

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  4. बिलकुल ठीक कहा आपने!

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  5. रामोदर से मिलना बहुत अच्छा लगा - उसे उपस्थित करने के लिये आपका आभार !

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  6. sir bahut ache.............

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  7. वाह! सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति.
    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर
    आना हुआ.आपको पढकर मन प्रसन्न हो गया.
    आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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