Wednesday, March 23, 2011

नमन

देश के शान की खातिर अपने जान देने वाले शहीदों को आज के दिन शत-शत नमन.
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को समर्पित पंक्तियाँ....

भगत ने प्राण देकर तब यहाँ दीपक जलाया था.
वो एक दीवाना था जिसने हमें रास्ता दिखाया था.
दिये को भी दिया तुमने था एक अंदाज़ जलने का.
निडर जीना निडर मरना यही सबको बताया था.

जय हिंद...
राजेश "नचिकेता"

Saturday, March 19, 2011

होली: सररारारारारा



होली: सररारारारारा

महामूर्खाधिराज...मूर्ख शिरोमणी ...राजेश नचिकेताजी महाराज (साथ वाली छवि उन्ही की है)....द्वारा होली स्पेशल ......आनंद लीजिये.....
चेतावनी: दिमाग का किंचित इस्तेमाल भी घातक हो सकता है..ही ही ही ही.ही ही....

पिचकारी कीचड भरी मैं ले आया गोरी.
संसद-संसद खेल ले आजा अब तो बाँकी छोरी.

माया नीला रंग हैं, मनमोहन हैं ग्रीन.
राजा का रंग स्याह है, लालू एभरग्रीन.

मन मैला अपना करूं फिर खेलूँ मैं फाग.
जुड़े नाम जो स्कैम से समझूं अपना भाग.

सच बोलूंगा मैं नहीं, झूठ का दूंगा साथ.
मार झपट्टा छीन लूं जो लग जाए हाथ.

कागज़ काला कर दिया लेकिन बनी ना बात.
मुंह पर स्याही पोत दूं , नंगी कर दूं गात.

देख भांग ना दाल दे कहीं रंग में भंग
डूबो रंग के रंग में छोड़ भंग का संग.

रंग सभी के अंग मलो, रहे ना कोई कोरा.
होली के हुडदंग में बोलो सा-रा-रा-रा....

अच्छे बुरे सब लोगों को होली की शुभकामना.....

Saturday, March 5, 2011

सिसकती मानवता

सिसकती मानवता

वर्तमान समय का किसी के द्वारा आँखों देखा हाल कविता के माध्यम से प्रस्तुत है.

शासक ने शासित को लूटा औ धनिकों ने निर्धन को
निस्सहाय को न्याय कहाँ है सबल कूटते निर्बल को
कठपुतली का खेल चल रहा संसद के गलियारे में
खेलों से आहत मानवता सिसक रही अंधियारे में |१|

दंगों में जलते घर देखे और दिखे शव सड़कों पर
रक्षक ही उत्पात मचाकर नंगा नाचें सड़कों पर
खेल खून का होता निश-दिन नेता के चौबारे में
नेता से आहत मानवता सिसक रही अंधियारे में |२|

बोली लगती देखी मैंने कुछ फौजी की साँसों पर
और सजा बाज़ार भी देखा इन सैनिक की लाशों पर.
होता था व्यापार वीर का कैसे एक इशारे में
वीरों-सी आहत मानवता सिसक रही अंधियारे में. |३|

हिमगिरी को ललकार रहा वो जिसकी है औकात नहीं
सोता शासक लेकिन ऐसे जैसे कोई बात नहीं.
डर है, हो विष्फोट कहीं ना "डल" के किसी शिकारे में.
इस डर से आहत मानवता सिसक रही अंधियारे में. |४|

झूठी शान के खातिर औरत मरती अपनों के हाथों.
कुछ पैसों के खातिर औरत बिकती अपनों के हाथों.
इज्जत लूट रहे हैं पापी दिन के ही उजियारे में.
पापी से आहत मानवता सिसक रही अंधियारे में. |५|

राजेश "नचिकेता"