नेवले बीन लिए सांप के दरबार बैठे हैं
प्यादे हुए बादशाहों के सरदार बैठे हैं
जिन्हे थे नसीब नहीं खतों के दस्तख भी कभी
वो खलीफा बने सुर्खी-ए- अखबार बैठे हैं
जब से सायकल से बाइक बाइक से कार हो गए हैं
सच मायने में तभी से बेकार हो गए हैं
सरकारों से लड़ रहे थे जनता थे जब तलक
जनता से लड़ रहे हैं, जब से सरकार हो गए हैं
nice post..
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