Friday, April 7, 2017

सरकार


नेवले बीन लिए सांप के दरबार बैठे हैं
प्यादे हुए बादशाहों के सरदार बैठे हैं 
जिन्हे थे नसीब नहीं खतों के दस्तख भी कभी 
वो खलीफा बने सुर्खी-ए- अखबार बैठे हैं

जब से सायकल से बाइक बाइक से कार हो गए हैं 
सच मायने में तभी से बेकार हो गए हैं 
सरकारों से लड़ रहे थे जनता थे जब तलक 
जनता से लड़ रहे हैं, जब से सरकार हो गए हैं

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