सपने में देखी मैंने
एक
चौंसठ साल की वृद्धा
रात के अंतिम पहर में
खड़ी थी दिल्ली शहर में
दूर से देखा तो कमर झुकी थी
ऐसा आभाष हुआ
पास गया तो थोड़ा
विरोधाभाष हुआ
चेहरे पर झुर्रियों की
झड़ी लगी थी
मगर गहनों से लदी पड़ी थी
मुझे देख कर सहम गयी
और रही मौन
मैंने पूछा कौन?
इत्ती रात को क्या कर रही हो?
इतने जेवर डालकर
अँधेरे में कहा जा रही हो?
उसने कहा
मैं अँधेरे और अकेलेपन की आदि हूँ
क्योकि
मैं "आजादी" हूँ
जिसे होना चाहिए
लोगो के मन में
पर मैं बंद हूँ
संसद भवन में
हर अमीर, आज अपने में मस्त है
मध्यवर्ग, मंहगाई से पस्त है
हर गरीब, व्यवस्था से त्रस्त है
मुझे आज जेवर मिले हैं
क्योकि
आज पंद्रह अगस्त है
मैं रोती हूँ आततायिओं की
कारगुजारी पर
मैं जाती हूँ अब
मिलूंगी छब्बीस जनवरी पर.
स्वप्न टूटा तो
मैं खुद से कई प्रश्न कर रहा था
और उधर लाल-किले पर
जश्न मनाने का "दस्तूर" चल रहा था
सब छुट्टी में मस्त हैं
क्योकि आज पंद्रह अगस्त है।
निराशा में डूबी 64 साल की बुढ़िया, कोई बेटा इसको ढाढ़स बँधायेगा?
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं.....
ReplyDeleteस्वतंत्र दिवस पर ढेरों शुभकामनाएँ तथा वीर शहीदों को सलाम!
ReplyDeletevery nice post. thanks
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति....सच है छुट्टी ही तो बनाकर रह गयी है पंद्रह अगस्त
ReplyDeletegave me goose bumps...
ReplyDeleteआपको तो साक्षात् दर्शन मिल चुके हैं आप धन्य हैं. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteवर्तमान की सच्चाई निहित है आपकी इस रचना में....
ReplyDeleteआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
विचारोत्तेजक मगर मन को दुखी करती पोस्ट ...
ReplyDeleteहम कहाँ से चले और कहाँ आ पहुंचे!
मैं खुद से कई प्रश्न कर रहा था
ReplyDeleteऔर उधर लाल-किले पर
जश्न मनाने का "दस्तूर" चल रहा था
सब छुट्टी में मस्त हैं
क्योकि आज पंद्रह अगस्त है...
We need to realize where we are leading to. Just celebrating is not enough, we must cherish our freedom and try to protect our country , our culture, heritage, integrity and lot more....
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