Saturday, December 4, 2010

क्या बात हो!


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क्या बात हो!

एक छत
दो रोटी
के संग थोड़ा वसन भी हो
तो क्या बात हो!!

युवाओं में टशन हो
टीनेजर में फैशन हो
संग सुसंस्कारी मन भी हो
तो क्या बात हो!!

एक सर्प एक मयूर
रहे सदा जिसमे संग-संग
ऐसा कोई सदन भी हो
तो क्या बात हो!!!!

दिवाली पे
सजा करे अट्टालिकाएं जरूर
मगर गरीब का भी घर हो रौशन
तो क्या बात हो!!!

नहीं गुरेज़ तम के वजूद से हमें
भर सके जो दीपक को नेह से
वो बरसाने वाला कोई घन भी हो
तो क्या बात हो!!

हवा,
उड़ा देती है तृण औ गर्द को
दुर्गुणों को उड़ाने की हो ताक़त जिसमे
ऐसा कोई पवन भी हो
तो क्या बात हो!!

प्रान्त हो भाषा भी हो
हो अनेकता भले ही
अखंड एक अपना
वतन भी हो
तो क्या बात हो!!

राम, रहीम, ईशा, गुरु
सब रहें मगर "नचिकेता"
हो मानवता के भी दर्शन
तो क्या बात हो!!!

राजेश कुमार "नचिकेता"

17 comments:

  1. Ati sundar..kaavya hai...achha laga...nachiketa bhai...shabdon ka sahi mishran kiya hai..agar aisa ho sakey to ye dharti swarg ban jaye...!

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  2. राम, रहीम, ईशा, गुरु
    सब रहें मगर "नचिकेता"
    हो मानवता के भी दर्शन
    तो क्या बात हो!!!

    बहुत ही सही सोंच है. काश ऐसा हो......

    www.srijanshikhar.blogspot.com पर " राजीव दीक्षित जी का जाना "

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  3. बुहत सुंदर भाव लिए कविता. ऐसी रचानाएँ सार्थक भी हैं और समाज के लिए उपयोगी भी.

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  4. सचमुच नचिकेता जी, आपकी सुन ली जाए तो क्या बात हो!!

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  5. राम, रहीम, ईशा, गुरु
    सब रहें मगर "नचिकेता"
    हो मानवता के भी दर्शन
    तो क्या बात हो!!!
    xxxxx
    बहुत सार्थक सन्देश ...आपका आभार

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  6. भूषन जी, उपेन्द्रजी,केवलजी और सलिलजी: मेरी भी यही इच्छा है की ऐसा सत्य हो. और अगर हम देश के नागरिक चाहें तो ऐसा हो भी सकता है
    आशुतोष, मलयज और विवेक और आप सब का आने और टिपण्णी देने के लिए धन्यवाद

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  7. राम, रहीम, ईशा, गुरु
    सब रहें मगर "नचिकेता"
    हो मानवता के भी दर्शन
    तो क्या बात हो!!!

    बहुत संवेदनशील भाव लिए रचना .......

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  8. नहीं गुरेज़ तम के वजूद से हमें
    भर सके जो दीपक को नेह से
    वो बरसाने वाला कोई घन भी हो
    तो क्या बात हो!!

    क्या बात है....... अती सुंदर, सच में दिल को छू लेने वाले सब्द....इतनी सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद
    --

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  9. राजेश जी,
    सर्वमान्य रूप से ’मुक्तक’ सिर्फ़ चार पंक्तियों की छंदोबद्ध कविता होती है जिसकी Rhyme scheme < A-A-B-A > होती है। उदाहरण के लिए मेरा एक मुक्तक प्रस्तुत है:

    किसी दरवेश के किरदार-सा, जीवन जिया होता।
    हृदय के सिन्धु का अनमोल अमृत भी पिया होता।
    तृषातुर रेत की हिरनी- सा व्याकुल मन नहीं होता,
    अगर अन्तर्कलश का आपने मंथन किया होता!!-(जितेन्द्र ‘जौहर)


    अच्छा लगा पढ़कर...आपकी इन छोटी-छोटी रचनाओं में सुन्दर भाव एवं विचार हैं!

    लेकिन ये ‘मुक्तक’ नहीं...बल्कि ‘क्षणिका’ विधा के नजदीक हैं...और चूँकि इनमें ‘तो क्या बात हो’ की टेक (Refrain) प्रयोग में लायी गयी है...अतः इन क्षणिकाओं को अपने सामूहिक कलेवर में एक मुकम्मल ‘कविता’ का रूपाकार मिल गया है।

    आशा है, बात कुछ तो स्पष्ट हो गयी होगी।

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  10. @मोनिकाजी का आभार टिप्पणी के लिए.
    @जितेंद्रजी आप ने बहुत अच्छी बात सिखाई मुक्तक से सन्दर्भ में...अब ये तकनीकी रूप से ठीक है....मैंने कविता के शीर्षक से "एक मुक्तक" शब्द हटा दिया है....
    मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद....
    स्नेह बनाए रखे...
    राजेश

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  11. बहुत खूब, शुभकामनायें !

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  12. राजेश कुमार 'नचिकेता' जी
    नमस्कार !
    क्या बात हो की क्या बात है !

    रचना में अच्छे भाव प्रकट हुए हैं

    युवाओं में टशन हो
    टीनेजर में फैशन हो
    संग सुसंस्कारी मन भी हो
    तो क्या बात हो!!


    सच है, संस्कार का साथ कभी किसी से नहीं छूटना चाहिए …


    शुभकामनाओं सहित

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. दिवाली पे
    सजा करे अट्टालिकाएं जरूर
    मगर गरीब का भी घर हो रौशन
    तो क्या बात हो!!

    काश ऐसा हो तो वाक़ई क्या बात है.अच्छी कामना.

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  14. दिवाली के बाद अब तो नया साल आ रहा है। नयी रचना का इंतज़ार है।

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  15. sateesh ji, raajendraji aur kunvarji,
    aap sab ka aanaa aur margdarshan ke saath protsaahan dena achchha lagta hai...
    bahut bahut dhanyawaad.
    raajesh

    Divyaaji, kaafee vyast rahaa. nayaa lekh likhne ke vichaar nahee aa rahe the. kuchh samay ke liye blog jagat se door rahaa.

    aapne prateekshaa kee main ahlaadit hua..
    naye saal ki badhaaee.

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