Sunday, November 14, 2010

जीवन की जय बोल


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अभी
के समय में आततायियो, हत्यारों और पापियों (आतंकवादियों) को पाप और हिंसा का मार्ग छोड़ कर प्रेम और धरम के मार्ग पर पेरेरित करने के लिए संबोधन.

जीवन की जय

धड़ मस्तक से नहीं पृथक कर, मृत्यु बांटने वाले
लहू को बहने दे नस में ही, गला काटने वाले
जीवन रक्षक प्राण-वायु में नहीं हलाहल घोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |१|

प्राण हेतु है कर्म भोग का, वध से मिलता क्या?
क्षत-विक्षत शव देख कलेजा नहीं पिघलता क्या?
करो चयन तुम मार्ग धरम का यही है अमृत बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |२|

कई शंख अणु, कोटि कोशिका और लक्ष्य कई ऊतक
कुछ सहस्त्र अंग, अस्थि सैकड़ों और बहुत से मूलक
संग भूत पंच मिला क्या जीवन गढ़ सकता है बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |३|

दुर्गम रचना, सुगम तोडना, सृजन कठिन, विध्वंस सरल है
शक्तिहीन तेरा शिकार पर याद रहे कि काल प्रबल है
कैसा हित तू साध रहा है प्राण छीन कर बोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |४|

कितने सुन्दर सर, सरिता, पर्वत सागर और ये वन
थलचर वनचर के कलरव से घूंज रहा है उपवन
देख सृष्टि कि अनुपम रचना आँखों के पट खोल
प्रेम, अहिंसा, धर्म सत्य और जीवन की जय बोल |५|

-नचिकेता
१४ नवम्बर २०१०

9 comments:

  1. badhiya... aavhaan aur veer ras ka mishran... achhi lagi.

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  2. ललकार भी और जीवन में रस घोलने की सलाह भी कविता को नयेपन से नवाजती है.
    बहुत अच्छे भैया

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  3. @Kunwar Ji, Saraahna, protsahan aur maargdarshan ke liye bahut bahut dhanyawaad....
    kaliyug ke ooper rachit mere kuchh dohe aaj ke anubhuti ke ank me prakaashit hue hain.

    http://www.anubhuti-hindi.org/dohe/rajesh_kumar.htm
    Dhanyawaad

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  4. aapne jis tarah se dharm ke baare ye kavita likhi, usme aapne manushy ke sath sath nature ka bahut achcha sangam kiya hai............
    really very very nice !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  5. very well written rajesh bhai....bahut hi achhi kavita thi yeh...

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  6. ati uttam Rajesh bhai...life ke baare mein ye kavita mast hai...., jeevan ki sundarta aur uske mulya par achha gungaan kiya hai.. lagey raho aur likhtey raho....

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