Tuesday, April 12, 2011

राम-जीवन:2


सभी लोगों को श्रीराम-नवमी की अनेकानेक शुभकामना......प्रस्तुत कविता पिछले भाग से आगे का हिस्सा है


पुराने भाग:
||*****|| राम-जीवन: भाग दो ||*****||

राजाओं में राजा था इक जिसका दशरथ नाम| धरम-धुरंधर रघुवंशी नित करते अच्छे काम
प्रजा सुखी थी वहाँ जहाँ का दशरथ राजा नेक| मित्र प्रेम करते थे उनसे डरते दुश्मन देख
रानी उनकी तीन-तीन थीं मगर पुत्र ना एक| पाने को संतान थे उसने किये उपाय अनेक
जब अनुकूल समय आया तो राजा ने ये सोचा| करूं यज्ञ और पाऊँ सुत जो करे वंश को ऊंचा
पुत्र के खातिर यज्ञ किया और पाया ऐसा वर में| चार चार बेटे खेलेंगे राजा तेरे घर में
पूर्व जनम में राजा को था दिया हरि ने दान
तेरा सुत बनकर आऊँगा, कहलाऊँगा राम |दोo-८
|

आये राम गर्भ में जबसे ऐसा हुआ प्रकाश| होगा अब कल्याण सभी का थी मन में ये आस
उस दिन अंतिम दिन था मेरे काले दुखी समय का| आनेवाले राम अवध में थे हरने दुःख सबका
चैत माह के शुक्ल पक्ष की नवीं तिथी की वेला| दिन के मध्य में आया वो जो था दुःख हरने वाला
धन्य गर्भ कौशल्या का और धन्य अवध की भूमि| स्वयं विष्णु ने आकर भर दी खाली गोदी सूनी
कहो भजूं मैं क्यों ना उनको जिनका ऐसा काम| छोटा बड़ा नहीं है कोई ऐसा कहते राम
ऐसी भाक्ती चाहता मैं नचिकेता दीन
राम मेरे पानी बने मैं बन जाऊं मीन |दो0-९|

शत्रुघन के साथ में भरत, लखन और राम| गुरु वशिष्ठ ने यूं रखा सब बच्चों का नाम
जो सबमे करता रमा वो कहलाया राम| सेवा औ अनुचर है उत्तम उसका लछिमन नाम
क्षण में शमन करे दुश्मन का है शत्रूघन वीर| पोषण करे जगत का देखो भरत धुरंधर धीर
चार वेद-से बेटे जिसको उसको क्या हो क्लेश| मेघ समय से वर्षा करते सुखी था पूरा देश
करने को कल्याण प्रभु का हुआ वहाँ अवतार| सब जन औ गौ जीव जंतु को मिला करेगा प्यार
जब होता संसार में कभी पाप-विस्तार
तज वैकुण्ठ आते हरी, ले मानव अवतार |दो-१०|

दुखी दीनों की सुन कर के, चले आये हैं राजा राम
स्थापित हो सके फिर से धरम, करने को ऐसे काम
धर्म-रत हो के ही उपयोग हो गर बाजूओं का बल
करम तेरे दिला देंगे तुझे भी राम का वो नाम |मुo-१|

पूरक ज्यूं रहते हैं नारायण और नर रहें वैसे नित संग राम और लछमन
धरती पे जब आये प्रभु धर नर देह, सब देव यहीं आके करते हैं कीरतन |कo-२|

क्रमशः.......

Tuesday, April 5, 2011

राम-जीवन:1



श्री गणेशाय नमः
एक छोटा सा प्रयास है श्री राम का नाम लेने का.....साहित्य के तौर पे त्रुटियाँ हो सकती हैं....उम्मीद है सुधी पाठक त्रुटियों की ओर इंगित कर के मेरी सहायता करेंगे.....सब को नवरात्र की शुभकामना....
||*****|| राम-जीवन: भाग एक ||*****||

भटक रहा था घोर शून्य में, एक जीव कुछ ऐसे| कर्म, भक्ति या अन्य मार्ग ले मोक्ष ढूँढता जैसे.
ब्रह्माण्ड में विचरण करता आया पास धरा के| देख अलौकिक रूप पृथ्वी का बोला शीश नवा के.
ये सुन्दर वायुमंडल और साथ में ऐसी काया| हरित, श्यामला तल और नीला नभ ये कैसे पाया.
बड़े प्रेम से धरती बोली जिसने मुझको रचा है| जो सर्जन करता है सबका ये भी उसका रचा है.
वही पोषण करता है सबका करता सबपे दया है| वही ब्रह्म है वही जीव है सब उसकी माया है.
सुनी धरा की बात जब हुआ जीव को भान
बोला माँ बतला दे मुझको कैसे मुक्त हों प्राण |दोo-१|

कई मार्ग हैं मुक्ति के जो लिखते वेद-पुराण| जप, तप, नियम, या भक्ती का हो चाहे प्रेम या ज्ञान.
जप, तप संयम कठिन अहो! है भक्ती आसान| करो करम तुम आपना रख मन में भगवान.
कलयुग में तो और भी सुलभ भक्ति का काम| करम-काण्ड को छोड़कर लेना है बस नाम
ग्रह नक्षत्रों से परे जिसका है आयाम| जपो नाम उस ब्रह्म का जिसका नाम है "राम"
वही कृष्ण है वही राम है और मीन, वामन है, परशुराम, कच्छप, वराह, वही नरसिंह और गौतम है
जिसके साँसों में बसे चार वेद सब ग्रन्थ
वही सृष्टि का आदि है वही सृष्टी का अंत|दोo-२|

आनंदित हो उठा जीव फिर सुन धरती की बात| जिज्ञासा पूरी करने को पूछी मन की बात
तेरी बातें याद दिलाती पूर्व जनम की बात| कथा सुनाते थे जब मुझको मेरे अपने तात
कहते थे वो, "राम" हुए थे त्रेता जुग में एक| भक्ति पाता भक्त उन्ही से डरता पापी देख
जीवन लीला उनकी सुनकर कट जाते हैं पाप| राम-कथा जो सुन ले कोई मिले ब्रह्म से आप
माता तेरी वाणी सुनकर आया मुझको ज्ञान| कह मुझको भी वही कहानी अपना बेटा जान
सागर है संसार यह और नाविक है प्राण
खेवानिहारा राम है, रामायण जल-यान|दोo-३|

कई जनम के पुण्य का मिलता है जब फल| राम नाम के साबुन से तब धुल जाता है मल
राम-कथा के स्वाद को बस उसने ही चक्खा| जिसने सारे दुर्गुण तज कर मन में राम को रक्खा
कथा सुनाऊंगी मैं तुम्हे जो है मुक्ति दायक| कहा धरा ने जीव से जाना जब इस लायक
तेरे भी सब पाप कटे अब है मुझको आभाष| शंका मन से दूर करो और श्रद्धा रखो पास
उमा ने शिव के मुख से पहले जो थी सुनी कहानी| वही कहानी अब मैं तुझको कहती हूँ ऐ प्राणी
रामायण के श्रवन को आ पहुंचे हनुमान
हुई कथा आरम्भ फिर ले गणपति का नाम|दोo-४|

राम कथा से पहले सुन ले थोड़ा सा इतिहास| लिया यहाँ अवतार किसलिए हुआ धरा पर वास
माँ असुरी, और मुनी जनक का पुत्र था एक बलवान| पाई उसने बहुत शक्तियां भज ब्रह्मा का नाम
राजा तो था लंका का पर स्वर्ग भी था आधीन| उसके ही संबंधी सारे पद पर थे आसीन
शास्त्रों का भी ज्ञाता था औ था रण का भी ज्ञान| लेकिन ज्ञानी होने पर भी था उसको अभिमान
अहंकार का दीमक जब भी लग जाता है जड़| मर जाती है सकल चेतना कर देती है जड़
भला बुरा कोई कैसे परखे गर हो मन में दंभ
ज्ञान का दर्पण निर्मल हो तो ही दिखता है बिम्ब|दोo-५|

वो अभिमानी बहुत बली था पा कर के वरदान| ऋषी पुलश्य का नाती वो था जिसका "रावण" नाम
नहीं मार सकता था कोई नर-वानर अतिरिक्त| ऐसा वर शंभू ने दिया था जब जाना निज-भक्त
वेद विदत सब कांडों को वो कहता था पाखण्ड| जो ले नाम हरि का उसको देता था वो दंड
त्राहि त्राहि सब सुर करते थे और धरा अकुलाय| दैत्य मगन थे सारे लेकिन दुखी विप्र और गाय
फिर मैं ऋषियों को संग लेकर गयी विष्णु के धाम| अपनी दासी जान के मुझको मिला अभय का दान
जा पृथ्वी तू निर्भय होकर लूंगा मैं अवतार
आततायियों का वध होगा साधू का उद्धार|दोo-६|

हरि की बातें सुनकर मुझको सुख पहुंचा अभिराम| मेरी पीड़ा हरने को अब आयेंगे श्रीराम
पलक झपकते देवों ने भी छोड़ दी अपनी काया| सेवा करने राम की सबने वानर रूप को पाया
करने लगी प्रतीक्षा मैं भी कब होगा अवतार| पापी का वध और शेष हों असुरी अत्याचार
उसी समय में अवधपुरी थी दशरथ की रजधानी| सभी सुखी थे वहाँ पे मैंने ऐसी सुनी कहानी
कहा प्रभु ने जन्म हमारा होगा वहीं अवध में| जहाँ सुधा सा निर्मल पानी बहता सरयू नद में
राम नाम संसार का कर देगा कल्याण
कलीकाल में खासकर जो भी लेगा नाम |दोo-७|

राम नाम भज नित ऐसा बोले वेद सब और ऋषी मुनी भी तो यही बस गाते हैं.
हर हरि नाम हरदम भजते हैं और नाम नारद भी नारायण का ही लेते हैं |कवित्त-१|

क्रमशः.........