सभी लोगों को श्रीराम-नवमी की अनेकानेक शुभकामना......प्रस्तुत कविता पिछले भाग से आगे का हिस्सा है
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||*****|| राम-जीवन: भाग दो ||*****||
राजाओं में राजा था इक जिसका दशरथ नाम| धरम-धुरंधर रघुवंशी नित करते अच्छे काम
प्रजा सुखी थी वहाँ जहाँ का दशरथ राजा नेक| मित्र प्रेम करते थे उनसे डरते दुश्मन देख
रानी उनकी तीन-तीन थीं मगर पुत्र ना एक| पाने को संतान थे उसने किये उपाय अनेक
जब अनुकूल समय आया तो राजा ने ये सोचा| करूं यज्ञ और पाऊँ सुत जो करे वंश को ऊंचा
पुत्र के खातिर यज्ञ किया और पाया ऐसा वर में| चार चार बेटे खेलेंगे राजा तेरे घर में
पूर्व जनम में राजा को था दिया हरि ने दान
तेरा सुत बनकर आऊँगा, कहलाऊँगा राम |दोo-८|
आये राम गर्भ में जबसे ऐसा हुआ प्रकाश| होगा अब कल्याण सभी का थी मन में ये आस
उस दिन अंतिम दिन था मेरे काले दुखी समय का| आनेवाले राम अवध में थे हरने दुःख सबका
चैत माह के शुक्ल पक्ष की नवीं तिथी की वेला| दिन के मध्य में आया वो जो था दुःख हरने वाला
धन्य गर्भ कौशल्या का और धन्य अवध की भूमि| स्वयं विष्णु ने आकर भर दी खाली गोदी सूनी
कहो भजूं मैं क्यों ना उनको जिनका ऐसा काम| छोटा बड़ा नहीं है कोई ऐसा कहते राम
ऐसी भाक्ती चाहता मैं नचिकेता दीन
राम मेरे पानी बने मैं बन जाऊं मीन |दो0-९|
रानी उनकी तीन-तीन थीं मगर पुत्र ना एक| पाने को संतान थे उसने किये उपाय अनेक
जब अनुकूल समय आया तो राजा ने ये सोचा| करूं यज्ञ और पाऊँ सुत जो करे वंश को ऊंचा
पुत्र के खातिर यज्ञ किया और पाया ऐसा वर में| चार चार बेटे खेलेंगे राजा तेरे घर में
पूर्व जनम में राजा को था दिया हरि ने दान
तेरा सुत बनकर आऊँगा, कहलाऊँगा राम |दोo-८|
आये राम गर्भ में जबसे ऐसा हुआ प्रकाश| होगा अब कल्याण सभी का थी मन में ये आस
उस दिन अंतिम दिन था मेरे काले दुखी समय का| आनेवाले राम अवध में थे हरने दुःख सबका
चैत माह के शुक्ल पक्ष की नवीं तिथी की वेला| दिन के मध्य में आया वो जो था दुःख हरने वाला
धन्य गर्भ कौशल्या का और धन्य अवध की भूमि| स्वयं विष्णु ने आकर भर दी खाली गोदी सूनी
कहो भजूं मैं क्यों ना उनको जिनका ऐसा काम| छोटा बड़ा नहीं है कोई ऐसा कहते राम
ऐसी भाक्ती चाहता मैं नचिकेता दीन
राम मेरे पानी बने मैं बन जाऊं मीन |दो0-९|
शत्रुघन के साथ में भरत, लखन और राम| गुरु वशिष्ठ ने यूं रखा सब बच्चों का नाम
जो सबमे करता रमा वो कहलाया राम| सेवा औ अनुचर है उत्तम उसका लछिमन नाम
क्षण में शमन करे दुश्मन का है शत्रूघन वीर| पोषण करे जगत का देखो भरत धुरंधर धीर
चार वेद-से बेटे जिसको उसको क्या हो क्लेश| मेघ समय से वर्षा करते सुखी था पूरा देश
करने को कल्याण प्रभु का हुआ वहाँ अवतार| सब जन औ गौ जीव जंतु को मिला करेगा प्यार
जब होता संसार में कभी पाप-विस्तार
तज वैकुण्ठ आते हरी, ले मानव अवतार |दो-१०|
दुखी दीनों की सुन कर के, चले आये हैं राजा राम
स्थापित हो सके फिर से धरम, करने को ऐसे काम
धर्म-रत हो के ही उपयोग हो गर बाजूओं का बल
करम तेरे दिला देंगे तुझे भी राम का वो नाम |मुo-१|
पूरक ज्यूं रहते हैं नारायण और नर रहें वैसे नित संग राम और लछमन
धरती पे जब आये प्रभु धर नर देह, सब देव यहीं आके करते हैं कीरतन |कo-२|
क्रमशः.......