Saturday, February 19, 2011

तू कहाँ: चंद मुक्तक

तू कहाँ: चंद मुक्तक
ये मुक्तक सर्वशक्तिमान शक्ति का पता बताने का एक प्रयास है. इन मुक्तकों का प्रयोजन कर्म कांडों से परे होकर आपसी सद्भाव के लिए प्रेरित करना है ताकि आपसी प्रेम वापस स्थापित हो सके. यह किसी भी पंथ, सम्प्रदाय, या धर्म के प्रति कोई द्वेष नहीं रखता.

नहीं रहता वो मंदिर में नहीं मस्जिद में पाओगे.
जरूरी है नहीं मिल जाय गर तीरथ भी जाओगे.
उसे मतलब नहीं आजान या अरदास, कीर्तन से.
जहाँ पर भाई-चारा हो, वहाँ सब ईश पाओगे.||१||

मर गयी ढूंढती दुनिया मगर भगवान ना पाया.
किया जप तप नियम फिर भी किसी ने ईश ना पाया.
पीर औ फादरों के द्वार पे भटका मगर कह दूं .
जहाँ थी प्रेम की गंगा, वहीं अल्लाह को पाया.||२||

धरा दरवेश का हुलिया बना साधू औ सन्यासी
पहन के देख ली वल्कल रही पर आतमा प्यासी.
बना नागा मगर फिर भी जुड़ा ना शांति से नाता.
जो उतरा झूठ का चोगा, मिली खुशियाँ यहीं सारी.||३||

हविश जलने से बोलो क्या किसी को स्वर्ग मिलता है?
या बस सरिता नहाने से किसे अपवर्ग मिलता है?
अरे परलोक की चिंता बता करता है क्यूं प्यारे
जहाँ "तेरा-मेरा" ना हो, वहीं त्रैलोक मिलता है. ||४||

मिटाए द्वेष का मल जो वही तो धर्म अच्छा है.
कुटुम्बी हो सभी नर बस यही तो मर्म सच्चा है.
किसी को कष्ट देने से बड़ा है पाप ना कोई
दीन की हो अगर सेवा, तो समझो कर्म अच्छा है.||५||

नींद से जाग जा बन्दे कहीं ना देर हो जाए.
पकड़ ले अब सही रास्ता कहीं ना देर हो जाए.
ना जाने टूट जाये कब ये अपनी सांस की डोरी.
फ़टाफ़ट काम निबटा ले, कहीं ना देर हो जाए.||६||

राजेश कुमार "नचिकेता"

Sunday, February 6, 2011

सरस्वती-पूजन

श्री पंचमी के अवसर पर माँ शारदे को समर्पित एक पूजा वन्दना.
सरस्वती-पूजन

कर में वीणा, पुस्तक शोभे, श्वेत कमल है आसन
हँस वाहिनी मात भारती का करते हम पूजन. ||||

तुम मन्त्रों की जननी हो, तुमने जाए वेद
मुझको अपना भक्त बना लो, दे दो धी का मेद. ||||

मिटे तिमिर अज्ञान का जिससे सबको ऐसा वर दो.
वाणी पर हो संयम हरदम रसना ऐसी कर दो. ||||

विद्या से हों युक्त सभी और ज्ञान का हो उजियारा.

भेद भाव सारे मिट जाएँ, बने देश फिर न्यारा.||||

ऐसी सोच सृजन कर दो माँ नहीं हो कोई झगडा.
अर्थ, कला या क्षेत्र हो कोई, अपना देश हो अगड़ा. ||||

सबका मन निर्मल हो जाए, बहे प्रेम की गंगा.
निज-सा सबको जाने सब बस ना हो मानव नंगा. ||||

सारे दुर्गुण दूर करो घट में भर दो अमृत
रक्त-पिपासू सब मर जाएँ, हो मानवता जीवित. ||||

रोग, ताप, संताप ना व्यापे पेट रहे ना खाली.
मन में हो आनद सभी के और मुखों पे लाली. ||||

अगर नहीं ये सब हो संभव बस इतना कर माता.
तेरा मेरा ख़तम करो, हो सबका सब से नाता. ||||

आप सब को वसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामना।

राजेश कुमार "नचिकेता"