Monday, June 28, 2010

कलयुग

Albela Khatri, Online Talent Serach, Hindi Kavi

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कलीकाल घनघोर में बहती उलटी धार|
दया धरम सत्कार के बदले पड़ती मार||

लच्छ लच्छमी हो गयी, हो गया भच्छ अभच्छ |
गोरस, गंगा गंध हुई, मदिरा हो गयी स्वच्छ||

नर नारी का भेद गया, लाज बिका बाज़ार |
अंग अंग नंगा हुआ, हाय रे हाय सिंगार ||

नयन तरेरे राम पर, काम हुआ सुखमूल|
बस मादा प्यारी रही, मात-पिता भए शूल||

जुआ, कपट, व्यभिचार का बढ़ता नित व्यापार|
चोर, वधिक, पापी फिरे मुक्त सकल संसार||

रे मन! मत धीरज तजो, चिंता करो ना शोक|
धरम का ध्वज लहराएगा, गूंजेगा जयघोष||

स्वच्छ धरा हो जाएगी, साधू होंगे लोग|
जब हरि कल्कि रूप ले आयेंगे इस लोक||

---नचिकेता