जो सोए है उन्हें जगाते हैं हम अपने छंदों से. हम पिघलाते लौह-बेड़ियाँ कुछ स्याही की बूंदों से...
Sunday, May 2, 2010
प्रश्नोत्तर
अपनी कुछ कलमबद्ध पंक्तियों से अपने ब्लॉग कि शुरुआत करना चाहता हूँ। इसमें एक बहुत ही पुराने सवाल का जवाब ढूँढने कि कोशिश की गयी है ।
पूछे पंडित यार सॉ, बूझो निज निज ढंग।
क्या पहले मुर्गी भई या भयो पहले अंड। १
एक कहे मुस्काई के बूझन में नहीं कष्ट।
मुर्गी ही पहले भई क्योकि लेडीज़ फस्ट। २।
मुर्गी कैसे आएगी बिन अंडे के यार
अंडा आया आदि में फिर हुआ जगत विस्तार । ३।
आदि-अंत के प्रश्न में मुर्गे को मत भूल।
मुर्गा मुर्गी प्रेम करे फिर खिले अंड-सा फूल। ४।
रचे विधाता श्रृष्टि को गढ़े लक्ष्य कई जीव ।
प्रेम प्राण का मूल है अन्यथा सब निर्जीव । ५।
-"नचिकेता"
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